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दर्द होता है | शाही शायरी
dard hota hai

नज़्म

दर्द होता है

रफ़ीक़ संदेलवी

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बहर-कैफ़ जो दर्द होता है
वो दर्द होता है

एड़ी में काँटा चुभे
तो बदन तिलमिलाता है

दिल ज़ब्त करता है रोता है
जो बर्ग टहनी से गिरता है

वो ज़र्द होता है
चक्की के पाटों में दाने तो पिसते हैं

पानी से निकले तो मछली तड़पती है
ताइर क़फ़स में

गिरफ़्तार हों तो फड़कते हैं
बादल से बादल मिलें तो कड़कते हैं

बिजली चमकती है
बरसात होती है

जो हिज्र की रात होती है
वो हिज्र की रात होती है

हम अपनी वहशत में
जो भेस बदलें

कोई रूप धारें
समुंदर बलोएँ या दीवार चाटें

तसव्वुर की झिलमिल में
दिन रात काटें

पहाड़ों पे छुट्टी मनाने को जाएँ
नदी में नहाएँ

ग़िज़ाओं की लज़्ज़त में सरशार हों
रोज़ पोशाक पर एक पोशाक बदलें

किसी इत्र की फुवार छिड़कें
चराग़ों की रंगीन लौ में

भरे रस भरे होंट छू लें
सनोबर के बाग़ों में घूमें

मगर बोझ दिल का जो होता है
वो तो ब-दस्तूर होता है

अंदर ही अंदर कहीं
सात पर्दों में मस्तूर होता है!

मैं आज की सुब्ह
मामूल से क़ब्ल जागा हूँ

ख़्वाबीदा बेटों के गालों पे
बोसा दिया है

वज़ू कर के सज्दा किया है
बहुत देर तक

आलती-पालती मार कर
ख़ुद में गुम हो के

योगा के आसन में बैठा हूँ
सूखे हुए सारे गमलों को

पानी दिया है
छतों खिड़कियों और ज़ीनों में

मकड़ी के जालों को पोंछा है
चिड़ियों को

रोटी के रेज़े भी डाले हैं
लेकिन जो छाले मिरे दिल के हैं

वो बहर-कैफ़ छाले हैं
छालों की सोज़िश से

तकलीफ़ होती है
दिल ज़ब्त करता है रोता है

जो दर्द होता है
वो दर्द होता है!!