कभी ऐसा भी करना
शाम की दहलीज़ पर
पल-भर को रुकना
डूबते सूरज का मंज़र देखना
और सोचना
कि शाम की गहरी उदासी का सबब क्या है
मुसाफ़िर जब थका-हारा
सर-ए-मंज़िल
कभी तन्हा उतरता है
तो क्या महसूस करता है
नज़्म
कभी ऐसा भी करना
यूसुफ़ ख़ालिद
नज़्म
यूसुफ़ ख़ालिद
कभी ऐसा भी करना
शाम की दहलीज़ पर
पल-भर को रुकना
डूबते सूरज का मंज़र देखना
और सोचना
कि शाम की गहरी उदासी का सबब क्या है
मुसाफ़िर जब थका-हारा
सर-ए-मंज़िल
कभी तन्हा उतरता है
तो क्या महसूस करता है