मैं
अपनी
जानिब
से पूरी कोशिश
तो कर रहा हूँ
मगर नतीजे
ख़िलाफ़ आएँ तो क्या करूँ मैं
मुझे
पता है
कि जॉब पर ही
हमारा फ़्युचर टिका हुआ है
मगर
ये रस्ता तो
दिन-ब-दिन अब
तवील होता ही जा रहा है
जो डर
तुम्हारा है
मेरे डर से
अलग नहीं है
हो तुम परेशाँ
तो मैं भी जानाँ सुकूँ में कब हूँ
मैं
अपनी
जानिब
से पूरी कोशिश
तो कर रहा हूँ
कहीं पे
मज़हब जवाज़ था तो
कहीं पे
रिश्वत ने हाथ काटे
कहीं पे
पर्चा बहुत कठिन था
कहीं पे
बीमार हो गया मैं
कहीं पे
छूटी है ट्रेन मेरी
कहीं पे
डिग्री बनी कमी है
कही पे
दुश्मन हुई घड़ी है
मैं
अपनी
जानिब
से पूरी कोशिश
तो कर रहा हूँ
मगर नतीजे
ख़िलाफ़ आएँ तो क्या करूँ मैं
बहुत
उमीदों का बोझ
काँधों पे ले के पढ़ना
सभी के
ख़्वाबों को
अपनी आँखों में
भर के पढ़ना
सहल नहीं है
मगर मैं फिर भी महाज़ पर इस तरह डटा हुआ हूँ
मैं
अपनी
जानिब
से पूरी कोशिश
तो कर रहा हूँ
ये
दौर
कितना
डरावना है
निकल के देखो
गो
एक
हड्डी की
आरज़ू में
हज़ार कुत्ते झगड़ रहे हैं
गली गली
सब भटक रहे हैं
कि कोच ट्रेनों के घर बने हैं
मैं ख़ुद भी
ट्रेनें बदल रहा हूँ
न जाने कब से भटक रहा हूँ
मैं
अपनी
जानिब
से पूरी कोशिश
तो कर रहा हूँ
दुआएँ
तुम भी तो
माँगती हो
मिली हो जब से
नमाज़ कोई
क़ज़ा तुम्हारी
नहीं हुई है
हँसी लबों से उड़ी हुई है
तुम्हारी रंगत बदल गई है
मगर
दुआएँ
असर ना लाएँ तो क्या करो तुम
मैं
अपनी
जानिब
से पूरी कोशिश
तो कर रहा हूँ
मगर नतीजे
ख़िलाफ़ आएँ तो क्या करूँ मैं
मेरी तुम्हारी
तरह
करोड़ों मोहब्बत पर
यही तो
ख़दशे बने हुए हैं
मगर
यहाँ की
हुकूमतों के
जो मसअले हैं वो और ही हैं
मैं
अपनी
जानिब
से पूरी कोशिश
तो कर रहा हूँ
मगर नतीजे
ख़िलाफ़ आएँ तो क्या करूँ मैं
नज़्म
बे-रोज़गार 2
सिराज फ़ैसल ख़ान