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और मोड़ ने कहा | शाही शायरी
aur moD ne kaha

नज़्म

और मोड़ ने कहा

साबिर दत्त

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बाद मुद्दत चले आए कैसे इधर
आज किस तरह मेरा ख़याल आ गया

ठहरो रुक जाओ रिश्ता है कुछ मुझ से भी
कुछ दिनों का नहीं रब्त-ए-देरीना है

नक़्श-ए-पा मैं तुम्हारे लिए बैठा हूँ
राज़ सीने में है लब सिए बैठा हूँ

ऐसे गुज़रे हो पहचानते ही नहीं
तुम तो जैसे मुझे जानते ही नहीं

रुक गया और कुछ सोच कर खो गया
दूर अपने तसव्वुर से भी हो गया

भूली-बिसरी हुई रात याद आ गई
बीते लम्हों की हर बात याद आ गई

किस के हमराह आया था इस मोड़ पर
कौन साथ पाने लाया था इस मोड़ पर

हाँ यहीं तेरी ज़ुल्फ़ों का साया मिला
हाँ यहीं आरज़ुओं का ग़ुंचा खिला

हाँ यहीं दिल की धड़कन हुई थी जवाँ
हाँ यहीं तो मिले थे ज़मीं आसमाँ

अब मैं इस मोड़ से क्या कहूँ? तू बता
पूछता है ''वो साया कहाँ रह गया''