गोरी-चट्टी याल घनी सी
दूध ऐसी पोशाक बदन की
लाम्बे नाज़ुक माथे पर मेहंदी का घाव
उड़ती-गिरती ख़ाक सुमों की
मुट्ठी-भर कर मुँह पर मिल कर दिल की प्यास बुझाओ
सदियों के दुख झेलते जाओ
रहे सफ़र में
हरे महकते खेतों में ख़ुश-बाश फिरे
अपने पीछे आती क़ुव्वत के नशे में खोया
रस्ते के हर भारी पत्थर को ठोकर से तोड़े
आगे ही आगे को दौड़े
आज यहाँ तक आ पहुँचा है
पर वो कल अब दूर नहीं है
जब उस के क़दमों के भाले
क़र्या क़स्बा शहर सभी को
पल-भर में मिस्मार करेंगे
हर शय को ताराज करेंगे
इस मरक़द से
उस मरक़द तक
राज करेंगे
और फिर वो दिन भी आएगा
जब इक तेज़ सुनहरा नश्तर
शह-ए-रग में इस की उतरेगा
ख़ून का फ़व्वारा छूटेगा
और वो क़ुव्वत
रेंगती और फुँकारती क़ुव्वत
मौज में आ कर नाच उठेगी
ख़ुशी से पागल हो जाएगी
नज़्म
अश्वमेध यग्य
वज़ीर आग़ा