तिरे डूब जाने से क्या फ़र्क़ पड़ता है मग़रूर सूरज
तिरे ब'अद मैं हूँ
उजाले की मंज़िल
चराग़-ए-ग़म-ए-दिल
जो हर दैर-ओ-काबा में हर रात जलता है, तन्हा अकेला
जो तू डूब जाएगा मग़रूर सूरज
तो मैं जल उठूँगा तिरे बअ'द लेकिन
अगर बुझ गया मैं
मुझे छू गया कोई झोंका हवा का
तो तारीक हो जाएगा घर ख़ुदा का
नज़्म
अना और अंदेशा
प्रेम वारबर्टनी