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इलाहाबाद से | शाही शायरी
allahabad se

नज़्म

इलाहाबाद से

असरार-उल-हक़ मजाज़

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इलाहाबाद में हर-सू हैं चर्चे
कि दिल्ली का शराबी आ गया है

ब-सद आवारगी या सद तबाही
ब-सद ख़ाना-ख़राबी आ गया है

गुलाबी लाओ छलकाओ लुंढाओ
कि शैदा-ए-गुलाबी आ गया है

निगाहों में ख़ुमार-ए-बादा ले कर
निगाहों का शराबी आ गया है

वो सरकश रहज़न-ए-ऐवान-ए-ख़ूबाँ
ब-अज़्म-ए-बारयाबी आ गया है

वो रुस्वा-ए-जहाँ नाकाम-ए-दौराँ
ब-ज़ो'म-ए-कामयाबी आ गया है

बुतान-ए-नाज़-फ़रमा से ये कह दो
कि इक तर्क-ए-शहाबी आ गया है

नवा-संजान-संगम को बता दो
हरीफ़-ए-फ़ारयाबी आ गया है

यहाँ के शहर यारों को ख़बर दो
कि मर्द-ए-इंक़िलाबी आ गया है