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अधूरा उंसुर | शाही शायरी
adhura unsur

नज़्म

अधूरा उंसुर

परवीन शीर

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वो सालमिय्यत थी एक वहदत
वो कामिलिय्यत किसी तरह एक ग़ैर-मज़बूत सानिए में बिखर गई तो

अलग हुआ उस का एक हिस्सा!
वो एक उंसुर का एक हिस्सा

झटक के दामन
ख़ला के गहरे अमीक़ ला-वक़्त फ़ासलों को उबूर करता

हज़ारों सदियों की दूरियों पर चला गया है.......!
कोई नहीं जानता के कैसे वो ना-मुकम्मल शिकस्ता उंसुर

अधूरे-पन की अज़िय्यतों से गुज़र रहा है
मगर वो इतना तो जानता है

कि जान से भी अज़ीज़-तर वो अधूरा उंसुर
अटूट बंधन की एक डोरी से बे-लचक सा बँधा हुआ है!

हवा की डोरी का इक सिरा उस के हाथ में है
तो दूसरा उस के हाथ में है

अगर ये रंजूर हो गया तो
हवा के तारों पे दुख की लहरें

वहाँ पहुँच कर
उसे भी दुख में लपेट लेंगी!!