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अदम ख़्वाब के ख़्वाब में | शाही शायरी
adam KHwab ke KHwab mein

नज़्म

अदम ख़्वाब के ख़्वाब में

नाहीद क़मर

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छान कर देख ली रेग-ए-दश्त-ए-ज़ियाँ
ढूँढ पाए न हम दूसरा आसमाँ

अजनबी मौसमों की उड़ानों में टूटे परों की तरह
हम जिए भी तो क्या

किस ने देखा हमें
चश्म-ए-नम के किनारों पे ठहरे हुए मंज़रों की तरह

रात की आँख से बह गए ख़्वाब भी हम भी
मादूम की अन-सुली नींद में

याद के ताक़ में अब तमन्ना की लो
का निशाँ तक नहीं

वाहिमा सा है बस
कोई आहट थी हमराह या कुछ न था

ख़्वाब-ए-हस्ती हमें इक अज़िय्यत भरे
दाम-ए-मा'दूमियत के सिवा कुछ न था