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अब दिन की बातें करते हैं | शाही शायरी
ab din ki baaten karte hain

नज़्म

अब दिन की बातें करते हैं

वज़ीर आग़ा

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लो रात की बात तमाम हुई
अब दिन की बातें करते हैं

सब ख़्वाब तमाशे धूल हुए
और जुगनू तारे दीप सभी

प्रकाश के फैले सागर में
चमकाट दिखाना भूल गए

इक चाँद कि शब भर साथ रहा
वो चाँद भी गिर कर टूट गया

लो रात की बात तमाम हुई
अब दिन की बातें करते हैं

फूलों के सूजे चेहरों पर
शबनम की चिड़ियाँ उतरी थीं

इन चिड़ियों पर हम सूरज के
तीरों का निशाना तकते हैं

अध-मीची अपनी पलकों से
हम गलियों और बाज़ारों में

सोने के रेज़े चुनते हैं
और दाग़ों धब्बों शिकनों से

दीवारें काली करते हैं
फिर उजले काग़ज़ पर लिक्खी

सब गंदी ख़बरें पढ़ते हैं
लो रात की बात तमाम हुई

अब दिन की बातें करते हैं