शब के आवारा-गर्द शहज़ादे
जा छुपे अपनी ख़्वाब-गाहों में
पड़ गए हैं गुलाबी डोरे से
रात की शबनमी निगाहों में
सीम तन अप्सराओं के झुरमुट
महव-ए-परवाज़ हैं फ़ज़ाओं में
रात-रानी की दिल-नशीं ख़ुश्बू
घुल गई मंचली हवाओं में
झील की बे-क़रार जल-परियाँ
आ के साहिल को चूम जाती हैं
दम-ब-दम मेरी डूबती नज़रें
तेरी राहों पे घूम जाती हैं
मुंतज़िर है उदास पगडंडी
एक संगीत रेज़ आहट की
राह तकती हैं अध-खुली कलियाँ
तेरी मासूम मुस्कुराहट की
जाने कितने ही रत-जगे बीते
आरज़ूओं की नर्म जानों पर
सो गए थक के दर्द के मारे
आस की खुरदुरी चटानों पर
नज़्म
आस
शाहिद अख़्तर