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आँख-मिचोली | शाही शायरी
aankh-micholi

नज़्म

आँख-मिचोली

प्रेम वारबर्टनी

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दिल के दरवाज़े पर किस ने दस्तक दी है?
कोई नहीं है!

अंदर बाहर इतनी गहरी इतनी बोझल
ख़ामोशी है

जैसे फ़ज़ा का दम घुट जाए
लेकिन देखो दूर कहीं से

गोरे नंगे और कुँवारे दो पैरों में
उजली उजली चाँदी की ज़ंजीरें पहने

ज़ीना चढ़ती आई अचानक
छम-छम करती एक पुरानी याद कि जिस से

सहम गए सोचों के साए
जैसे क़ब्रिस्तान से उठ कर

रूह किसी की आए
और फिर आँख झपकते खो जाए!