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आज की रात | शाही शायरी
aaj ki raat

नज़्म

आज की रात

रईस फ़रोग़

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आज की रात
इक शख़्स तन्हा

बहुत ही उदास और बहुत ही ख़तरनाक है
आज की रात

इस क़र्या-ए-मेहरबाँ में
नहीं है कोई मेहरबाँ दस्तियाब

आज की रात
किस अजनबी मेज़बाँ से

तवाना रहे जादू-ए-बर्शगाल
आज की रात

अपने फ़्लैटों से देखो
शिकस्तों की ज़द में शरार ओ शहाब

एरपोर्ट से घर तलक ख़्वाहिशें
आप के साथ बिस्तर तलक ख़्वाहिशें

सो बिस्तर की बत्ती बुझाते हुए
बुरी शायरी गुनगुनाते हुए

ना-गहाँ ये ख़बर ये ख़याल
कि ख़्वाहिश तो है ही नहीं