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आधी मौत का जन्म | शाही शायरी
aadhi maut ka janm

नज़्म

आधी मौत का जन्म

अंजुम सलीमी

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अपने अधूरे वजूद के साथ
मैं ने अपनी आधी क़ब्र माँ की कोख में बनाई

और आधी बाप के दिल में
मैं अपनी दोनों क़ब्रों में

थोड़ा थोड़ा जी रहा हूँ
थोड़ा थोड़ा मर रहा हूँ

मसीहा ने अपने नुस्ख़े में
मेरी तहलील की तज्वीज़ लिखी है

बाबा ने मेरे दोबारा जन्म का मशवरा माँगा
और माँ ने मेरे बे-नाम कतबे को आँसुओं से साफ़ किया

तब
मेरे अधूरे और पूरे जन्म का फ़ैसला मुझ पर छोड़ दिया गया

दो क़ब्रों में बने वजूद का तख़्मीना लगाते हुए
सोचता हूँ

क्या करूँ?
मरने के लिए जी उठूँ?

या जीने के लिए मुल्तवी हो जाऊँ?
प्यारे रिश्तो!

मैं एक तरफ़ दुआओं के कफ़न में लिपटा पड़ा हूँ
और दूसरी तरफ़

मेरे सिरहाने सूरज-मुखी का फूल धरा है