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तोहफ़ा-ए-दर्वेश | शाही शायरी
tohfa-e-darwesh

नज़्म

तोहफ़ा-ए-दर्वेश

ज़े ख़े शीन

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बहर-ए-ग़म में है सख़्त तुग़्यानी
सर से ऊपर गुज़र गया पानी

कब तक ऐ नुज़हत-ए-बरिश्ता-जिगर
शोर या रब से अर्श-ए-जुम्बानी

रोने-धोने से जान खोने से
कहीं बनते हैं काम दीवानी

दर्द-ए-दिल दर्द-आफ़रीं को सुना
कर गुज़र जी में है जो कुछ ठानी

दश्त-ए-वहदत है दश्त-ए-वहदत है
देख आहिस्ता कर फ़रस-रानी

बे-ख़बर पहले नक़्श कर दिल पर
अज़्मत-ए-बारगाह-ए-यज़्दानी

माया-ए-अश्क याँ बज़ाअ'त-ए-मोर
हेच वाँ शौकत-ए-सुलैमानी

पहले दे सदक़ा मा-सिवा अल्लाह
पहले कर जान-ओ-दिल की क़ुर्बानी

सदफ़-ए-फ़िक्र से निकाल गुहर
तर-ब-तर कर अरक़ से पेशानी

नुज़हत-ए-बे-ज़ौ उसे हदिया ब-दस्त
हो क़ुबूल-ए-जनाब-ए-सुल्तानी

हदिया क्या एक सादा दफ़्तर पर
लिख के लाई हूँ लफ़्ज़-ए-ला-सानी

दीं है उल्फ़त वतन अफ़्ग़ानिस्ताँ
उर्फ़ मजनूँ है हमेशा हस्सानी