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तन्हाई | शाही शायरी
tanhai

नज़्म

तन्हाई

ज़ाहिद डार

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ये ज़मीं ये आसमाँ ये काएनात
एक ला-महदूद वुसअ'त एक बे-मा'नी वजूद

आदमी इस अबतरी की रूह है
आदमी इस माद्दे का ज़ेहन है

अबतरी ला-इंतिहा
माद्दा-ए-ला-इंतिहा

आदमी महदूद है
आदमी का ज़ेहन भी महदूद है

रूह भी महदूद है
ये ज़मीं ये आसमाँ ये काएनात

जब्र का इक सिलसिला
किस तरह समझूँ उसे

कर्ब है और रूह की तन्हाइयाँ
ज़ेहन की ख़ामोशियाँ

माद्दे की चार दीवारी में सर को फोड़ता फिरता हूँ मैं
ज़िंदगी के ख़त्म हो जाने से पहले

राज़ पा सकता नहीं
और जब मर जाऊँगा

राज़ का इक जुज़्व बन जाऊँगा मैं
तब मुझे ढूँडेगा कौन

कौन ढूँडेगा मुझे
आह ये लाचारगी बेबसी

एक ला-महदूद वुसअ'त एक बे-मा'नी वजूद
ये ज़मीं ये आसमाँ ये काएनात