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जिला-वतन की वापसी | शाही शायरी
jila-watan ki wapsi

नज़्म

जिला-वतन की वापसी

यासीन आफ़ाक़ी

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ज़मीन का वजूद मेरे इंतिज़ार में था
मेरी सदा को

रौशनी की शनाख़्त के लिए सुना गया
जो अज़ली पानियों से

फ़व्वारे की तरह फैल रही थी
मैं तेज़ तेज़

आबशार की तरह ज़मीन के मुँह में गिर रहा था
ज़मीन का मुँह

गुलाब के फूल की तरह हवा में वा हो रहा था
पहली बार जब मैं आसमान से गिरा था

ज़मीन ने मेरी आवाज़ को मौसीक़ी की तरह सुना था
ज़मीन के दिल में दर्द का दरिया था

जिस में मैं ने जन्म लिया था
अब मैं अपने अंदर से उस रौशनी को याद करता हूँ

जो मेरे वजूद में ग़ैर-मा'मूली ख़ामोशी के साथ महफ़ूज़ है
और अपनी पहली मौजूदगी के साथ

मेरी आँखों में उभर आती है
लेकिन मैं इस आवाज़ को कभी नहीं पा सकूँगा

जो मेरे घर का सुकून है
मैं हर रोज़ अपने आप को छोड़ता हूँ

एक ज़ख़्मी परिंदे की तरह
जो बंद हवा मैं आसमान की तरह उड़ता है

और एक जिला-वतन की तरह साँस लेता है