नींद पलकों के साएबाँ में नहीं
ताइर-ए-ख़्वाब कर गया पर्वाज़
वादी-ए-चश्म के उफ़ुक़ से परे
आँख महव-ए-तसव्वुरात-ए-हुसैन
एक हलचल सी ज़ेहन-ओ-दिल में मची
और नज़र इक मक़ाम टिकती नहीं
ख़ुशबुओं के हिसार-ए-गर्दिश में
है समाअ'त कुछ इस क़दर हस्सास
आँख की पुतलियों के थामे हाथ
दौड़ती है उधर से उस जानिब
एक लम्हा उसे क़रार नहीं
एक मंज़र पे ए'तिबार नहीं
नज़्म
सौत-ए-नादीदा
याक़ूब तसव्वुर