वही इक अजनबी चेहरा मिरे ख़्वाबों में आता है
उदासी देखती हूँ जब भी उस की गहरी आँखों में
चुरा लेता है ये मंज़र मिरी हर नींद का लम्हा
उदासी उस के चेहरे की मुझे सोने नहीं देती
मुझे एहसास होता है कि उस की गर्म साँसें भी
मुझे सोने नहीं देतीं मुझे जीने नहीं देतीं
मुझे एहसास होता है वही एक अजनबी चेहरा
मेरे नज़दीक आ कर लोरियों से अपनी धड़कन की
सुलाता है मुझे और दफ़अ'तन फिर लूट जाता है
नज़्म
एक अजनबी चेहरा
विश्मा ख़ान विश्मा