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ज़ुल्मत-गह-ए-दौराँ में सुब्ह-ए-चमन-ए-दिल हूँ | शाही शायरी
zulmat-gah-e-dauran mein subh-e-chaman-e-dil hun

ग़ज़ल

ज़ुल्मत-गह-ए-दौराँ में सुब्ह-ए-चमन-ए-दिल हूँ

शमीम करहानी

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ज़ुल्मत-गह-ए-दौराँ में सुब्ह-ए-चमन-ए-दिल हूँ
रोको न सफ़र मेरा मैं क़िस्मत-ए-मंज़िल हूँ

ज़िंदानी-ए-हस्ती हूँ पाबंद-ए-सलासिल हूँ
किस तरह मिलूँ तुम से ख़ुद राह में हाइल हूँ

बर्बाद सही लेकिन बर्बाद-ए-ग़म-ए-दिल हूँ
आँखों से लगा मुझ को गर्द-ए-रह-ए-मंज़िल हूँ

ऐ संग-ब-कफ़ दुनिया आ शौक़ से आ लेकिन
आहिस्ता क़दम रखना मैं शीशा-गह-ए-दिल हूँ

मौज-ए-ग़म-ए-जानाँ हो या मौज-ए-ग़म-ए-दौराँ
आने दो मिरे दिल तक हर मौज का साहिल हूँ

हस्ती को ग़म-ए-आलम आलम को ग़म-ए-हस्ती
ज़िंदाँ से बयाबाँ तक इक सिलसिला-ए-दिल हूँ

तुम महव-ए-ख़ुद-आराई में आलम-ए-तन्हाई
तुम महफ़िल-ए-ख़ल्वत हो मैं ख़ल्वत-ए-महफ़िल हूँ

ख़ून अपनी तमन्ना का ख़ुद किस ने किया होगा
मुझ पर न तरस खाओ बिस्मिल नहीं क़ातिल हूँ

गुलशन से 'शमीम' आख़िर किस तरह गुज़र जाएँ
हर फूल ये कहता है मैं प्यार के क़ाबिल हूँ