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ज़ुहूर-ए-कश्फ़-ओ-करामात में पड़ा हुआ हूँ | शाही शायरी
zuhur-e-kashf-o-karamat mein paDa hua hun

ग़ज़ल

ज़ुहूर-ए-कश्फ़-ओ-करामात में पड़ा हुआ हूँ

अंजुम सलीमी

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ज़ुहूर-ए-कश्फ़-ओ-करामात में पड़ा हुआ हूँ
अभी मैं अपने हिजाबात में पड़ा हुआ हूँ

मुझे यक़ीं ही नहीं आ रहा कि ये मैं हूँ
अजब तवहहुम ओ शुबहात में पड़ा हुआ हूँ

गुज़र रही है मुझे रौंदती हुई दुनिया
क़दीम ओ कोहना रिवायात में पड़ा हुआ हूँ

बचाओ का कोई रस्ता नहीं बचा मुझ में
मैं अपने ख़ाना-ए-शह-मात में पड़ा हुआ हूँ

मैं अपने दिल पे बहुत ज़ुल्म करने वाला था
सो अब जहान-ए-मकाफ़ात में पड़ा हुआ हूँ