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ज़ोर पैदा जिस्म ओ जाँ की ना-तवानी से हुआ | शाही शायरी
zor paida jism o jaan ki na-tawani se hua

ग़ज़ल

ज़ोर पैदा जिस्म ओ जाँ की ना-तवानी से हुआ

मुनीर नियाज़ी

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ज़ोर पैदा जिस्म ओ जाँ की ना-तवानी से हुआ
शोर शहरों में मुसलसल बे-ज़बानी से हुआ

देर तक की ज़िंदगी की ख़्वाहिशें उस बुत को हैं
शौक़ उस को इंतिहा का उम्र-ए-फ़ानी से हुआ

मैं हुआ नाकाम अपनी बे-यक़ीनी के सबब
जो हुआ सब मेरे दिल की बद-गुमानी से हुआ

है निशाँ मेरा भी शायद शश-जिहात-ए-दहर में
ये गुमाँ मुझ को ख़ुद अपनी बे-निशानी से हुआ

था 'मुनीर' आग़ाज़ ही से रास्ता अपना ग़लत
इस का अंदाज़ा सफ़र की राइगानी से हुआ