ज़िंदगी क्या है एक मंज़र है
रेत है तिश्नगी है कीकर है
आप बेहद हसीन हैं लेकिन
दिल तो याक़ूत का भी पत्थर है
एक तस्वीर मेरी आँखों की
एक तस्वीर में समुंदर है
साया-ए-आतिफ़त में रहता हूँ
ग़म तिरा राहतों से बढ़ कर है
आप क्यूँ देर से खड़े हैं यहाँ
आइए पास ही मिरा घर है
कूचा-ए-ज़ात में भटकता हूँ
आप का रास्ता तो अज़-बर है
सनसनी आहटों से पहले थी
ख़ौफ़ ख़ामोशियों का मज़हर है
एक तस्वीर में जिए हम लोग
ज़िंदगी भी अजीब मंज़र है
मैं सितारा-मिज़ाज हूँ 'राहिल'
जागना ही मिरा मुक़द्दर है

ग़ज़ल
ज़िंदगी क्या है एक मंज़र है
राहिल बुख़ारी