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ज़िंदगी ख़्वाब की तरह देखी | शाही शायरी
zindagi KHwab ki tarah dekhi

ग़ज़ल

ज़िंदगी ख़्वाब की तरह देखी

मुज़फ़्फ़र वारसी

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ज़िंदगी ख़्वाब की तरह देखी
नाव गिर्दाब की तरह देखी

मेरी उर्यानियों को ढाँप लिया
गर्द कम-ख़्वाब की तरह देखी

उम्र भर छेड़ती रही हम को
साँस मिज़राब की तरह देखी

रास्ते की थकन भी काँधे पर
माल-ओ-अस्बाब की तरह देखी

इश्क़ ने उस को राख कर डाला
बर्फ़ तेज़ाब की तरह देखी

ग़र्क़ हो हो गए पसीने में
धूप सैलाब की तरह देखी

हम ने ज़िंदा-दिली 'मुज़फ़्फ़र' में
अहल-ए-पंजाब की तरह देखी