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ज़र्द मौसम की मुसीबत जागी | शाही शायरी
zard mausam ki musibat jagi

ग़ज़ल

ज़र्द मौसम की मुसीबत जागी

प्रकाश तिवारी

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ज़र्द मौसम की मुसीबत जागी
पत्ते टूटे तो हक़ीक़त जागी

दर्द साथ अपने दवा भी लाया
ज़ख़्म निकले तो जराहत जागी

चाक-दामन हुआ तो होश आया
जब उड़े होश बसीरत जागी

ईंट पत्थर के अलावा क्या था
जल गया घर तो सदाक़त जागी

चाँद निकला तो मिरे पहलू में
तेरी ख़्वाबीदा मोहब्बत जागी

झिलमिलाने लगे पलकों पे चराग़
दिल में जब दर्द की शिद्दत जागी

हम बदलते रहे पहलू 'प्रकाश'
दर्द सोया न मोहब्बत जागी