ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया
हमारी बेकसी को देख कर सारा जहाँ रोया
मैं जब निकला चमन से शबनम आब-ए-गुलिस्ताँ रोया
उदासी छा गई ऐसी ख़ुद आख़िर बाग़बाँ रोया
न आया रहम कुछ भी आह दिल में उस सितमगर के
हमारी जब्हा-साई के असर से आस्ताँ रोया
हर इक अज़्व-ए-बदन मातम-कुनाँ है दिल के जाने से
हुआ यूसुफ़ जो गुम तो कारवाँ का कारवाँ रोया
ख़लल-अफ़गन तिरी बज़्म-ए-तरब में कौन हो ज़ालिम
हुआ क्या गर तिरे कूचे में कोई तुफ़्ता-ए-जाँ रोया
मिरे आँसू तिरी बेदाद का पर्दा न खोलेंगे
अबस ये बद-गुमानी है मैं कब रोया कहाँ रोया
उदू ख़ुश हों तो हों ऐ बे-मुरव्वत तेरी महफ़िल में
मिरा तो हाल ये है जब कभी आया यहाँ रोया
जफ़ा-ए-दुश्मनाँ और बेवफ़ाई-हा-ए-याराँ से
बहुत ग़म-दीदा हो कर 'वहशत'-ए-आज़ुर्दा-जाँ रोया
ग़ज़ल
ज़मीं रोई हमारे हाल पर और आसमाँ रोया
वहशत रज़ा अली कलकत्वी