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ज़मीं को खींच के मैं सू-ए-आसमाँ ले जाऊँ | शाही शायरी
zamin ko khinch ke main su-e-asman le jaun

ग़ज़ल

ज़मीं को खींच के मैं सू-ए-आसमाँ ले जाऊँ

शमीम रविश

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ज़मीं को खींच के मैं सू-ए-आसमाँ ले जाऊँ
ये दिल का दर्द है इस दर्द को कहाँ ले जाऊँ

ये दिल अजीब सी इक कश्मकश से है दो-चार
नतीजा एक सा होगा इसे जहाँ ले जाऊँ

यहाँ तो गुल भी समाते नहीं इन आँखों में
बता कहाँ मैं ये चेहरा धुआँ धुआँ ले जाऊँ

लिखा तो है मिरी बे-ख़्वाब सी इन आँखों में
मैं अपने-आप को दुनिया से राएगाँ ले जाऊँ

यहाँ तक आ के पलटना भी मेरे बस में नहीं
मैं किस ठिकाने 'रविश' अब ये जिस्म ओ जाँ ले जाऊँ