ज़मीं बिछाई यहाँ आसमाँ बुलंद किया
फिर उस ने एक सितारे को अर्जुमंद किया
अजीब रास्ता खुलता चला गया मुझ पर
जब एक रात दर-ए-ख़्वाब मैं ने बंद किया
पुकारते थे मुझे आसमाँ मगर मैं ने
क़याम करने को ये ख़ाक-दाँ पसंद किया
अजीब बात थी अब के मुबारज़त में 'नदीम'
कि मुझ को मेरी हज़ीमत ने फ़तह-मंद किया
ग़ज़ल
ज़मीं बिछाई यहाँ आसमाँ बुलंद किया
इनाम नदीम