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ज़ख़्म सीने पे लगा आँख से आँसू निकले | शाही शायरी
zaKHm sine pe laga aankh se aansu nikle

ग़ज़ल

ज़ख़्म सीने पे लगा आँख से आँसू निकले

सलाहुद्दीन नदीम

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ज़ख़्म सीने पे लगा आँख से आँसू निकले
ग़म की आहट से कई दर्द के आहू निकले

हल्क़ा-ए-रेग-ए-रवाँ दश्त के दरिया का भँवर
वहशत-ए-दिल के सफ़ीने में अगर तू निकले

बद-गुमानी की निगाहों से जो देखा है तुझे
तेरी हर बात में सौ तरह के पहलू निकले

महक उट्ठे ये बयाबाँ भी गुलिस्ताँ की तरह
क़ैद-ए-गुलज़ार से आज़ाद जो ख़ुश्बू निकले

इस कड़ी धूप में था किस को सफ़र का यारा
हर क़दम साया-कुनाँ काकुल-ओ-गेसू निकले

सेहर गुल-कारी-ए-एहसास का बाइ'स हैं 'नदीम'
दिल में जो तीर ग़म-ए-जाँ के तराज़ू निकले