ज़ख़्म सीने पे लगा आँख से आँसू निकले
ग़म की आहट से कई दर्द के आहू निकले
हल्क़ा-ए-रेग-ए-रवाँ दश्त के दरिया का भँवर
वहशत-ए-दिल के सफ़ीने में अगर तू निकले
बद-गुमानी की निगाहों से जो देखा है तुझे
तेरी हर बात में सौ तरह के पहलू निकले
महक उट्ठे ये बयाबाँ भी गुलिस्ताँ की तरह
क़ैद-ए-गुलज़ार से आज़ाद जो ख़ुश्बू निकले
इस कड़ी धूप में था किस को सफ़र का यारा
हर क़दम साया-कुनाँ काकुल-ओ-गेसू निकले
सेहर गुल-कारी-ए-एहसास का बाइ'स हैं 'नदीम'
दिल में जो तीर ग़म-ए-जाँ के तराज़ू निकले

ग़ज़ल
ज़ख़्म सीने पे लगा आँख से आँसू निकले
सलाहुद्दीन नदीम