ज़हर की चुटकी ही मिल जाए बराए दर्द-ए-दिल
कुछ न कुछ तो चाहिए बाबा दवा-ए-दर्द-ए-दिल
रात को आराम से हूँ मैं न दिन को चैन से
हाए हाए वहशत-ए-दिल हाए हाए दर्द-ए-दिल
दर्द-ए-दिल ने तो हमें बेहाल कर के रख दिया
काश कोई और ग़म होता बजाए दर्द-ए-दिल
उस ने हम से ख़ैरियत पूछी तो हम चुप हो गए
कोई लफ़्ज़ों में भला कैसे बताए दर्द-ए-दिल
दो बलाएँ आज कल अपनी शरीक-ए-हाल हैं
इक बला-ए-दर्द-ए-दुनिया इक बला-ए-दर्द-ए-दिल
ज़िंदगी में हर तरह के लोग मिलते हैं 'शुऊर'
आश्ना-ए-दर्द-ए-दिल ना-आश्ना-ए-दर्द-ए-दिल
ग़ज़ल
ज़हर की चुटकी ही मिल जाए बराए दर्द-ए-दिल
अनवर शऊर