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यूँही बैठे रहो बस दर्द-ए-दिल से बे-ख़बर हो कर | शाही शायरी
yunhi baiThe raho bas dard-e-dil se be-KHabar ho kar

ग़ज़ल

यूँही बैठे रहो बस दर्द-ए-दिल से बे-ख़बर हो कर

असरार-उल-हक़ मजाज़

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यूँही बैठे रहो बस दर्द-ए-दिल से बे-ख़बर हो कर
बनो क्यूँ चारागर तुम क्या करोगे चारागर हो कर

दिखा दे एक दिन ऐ हुस्न-ए-रंगीं जल्वा-गर हो कर
वो नज़्ज़ारा जो इन आँखों में रह जाए नज़र हो कर

दिल-ए-सोज़-आशना के जल्वे थे जो मुंतशिर हो कर
फ़ज़ा-ए-दहर में चमका किए बर्क़ ओ शरर हो कर

वही जल्वे जो इक दिन दामन-ए-दिल से गुरेज़ाँ थे
नज़र में रह गए गुल-हा-ए-दामान-ए-नज़र हो कर

फ़लक की सम्त किस हसरत से तकते हैं मआज़-अल्लाह
ये नाले ना-रसा हो कर ये आहें बे-असर हो कर

ये किस के हुस्न के रंगीन जल्वे छाए जाते हैं
शफ़क़ की सुर्ख़ियाँ बन कर तजल्ली की सहर हो कर