यूँ तिरे मस्त सर-ए-राह चला करते हैं
जैसे शाहान-ए-फ़लक-जाह चला करते हैं
ग़म-ए-दुनिया ग़म-ए-जानाँ ग़म-ए-मंज़िल ग़म-ए-राह
कितने ग़म ज़ीस्त के हमराह चला करते हैं
दिल भी क्या राहगुज़र है कि हमेशा जिस में
ज़ुहरा-ओ-मुश्तरी-ओ-माह चला करते हैं
ये तो रिंदों की गली है अधर ऐ शैख़ कहाँ
ऐसी राहों में तो गुमराह चला करते हैं
ग़म-ए-दौराँ की कड़ी धूप में चलने वाले
ब-तमन्ना-ए-शब-ए-माह चला करते हैं
हम को चलना है जो गुलशन में तो इस तरह चलें
जैसे गुलशन के हवा-ख़्वाह चला करते हैं
याद-ए-माज़ी ग़म-ए-इमरोज़ उमीद-ए-फ़र्दा
कितने साए मिरे हमराह चला करते हैं
वादी-ए-दिल है क़दम सोच के रखना कि 'शमीम'
तेज़ इस राह में नागाह चला करते हैं

ग़ज़ल
यूँ तिरे मस्त सर-ए-राह चला करते हैं
शमीम करहानी