यूँ पहुँचना है मुझे रूह की तुग़्यानी तक
जिस तरह रस्सी से जाता है घड़ा पानी तक
काटनी पड़ती है नाख़ुन से तकन की ज़ंजीर
यूँ ही आती नहीं मुश्किल कोई आसानी तक
ज़िंदगी तुझ से बनाए हुए रिश्ते की हवस
मुझ को ले आई है दुनिया की परेशानी तक
ऐसे जर्राहों का क़ब्ज़ा है सुख़न पर अफ़्सोस
कर नहीं सकते जो लफ़्ज़ों की मुसलमानी तक
अपने अंदर मैं किया करता हूँ राजा की तलाश
इस वसीले से पहुँचना है मुझे रानी तक
ऐसे लफ़्ज़ों को भी बे-ऐब बनाया हम ने
जिन की जाएज़ ही नहीं होती थी क़ुर्बानी तक
हुस्न का पाँव दबाती है जहाँ शोख़ हवा
इश्क़ ले आया है मुझ को इसी वीरानी तक
'फ़ैज़' हम लोग हैं इक ऐसी कचेहरी के वकील
फ़ौजदारी से पहुँचते हैं जो दीवानी तक

ग़ज़ल
यूँ पहुँचना है मुझे रूह की तुग़्यानी तक
फ़ैज़ ख़लीलाबादी