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यूँ न रह रह कर हमें तरसाइए | शाही शायरी
yun na rah rah kar hamein tarsaiye

ग़ज़ल

यूँ न रह रह कर हमें तरसाइए

साग़र निज़ामी

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यूँ न रह रह कर हमें तरसाइए
आइए आ जाइए आ जाइए

फिर वही दानिस्ता ठोकर खाइए
फिर मिरी आग़ोश में गिर जाइए

मेरी दुनिया मुंतज़िर है आप की
अपनी दुनिया छोड़ कर आ जाइए

ये हवा साग़र ये हल्की चाँदनी
जी मैं आता है यहीं मर जाइए