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यूँ हुजरा-ए-ख़याल में बैठा हुआ हूँ मैं | शाही शायरी
yun hujra-e-KHayal mein baiTha hua hun main

ग़ज़ल

यूँ हुजरा-ए-ख़याल में बैठा हुआ हूँ मैं

फ़ारूक़ मुज़्तर

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यूँ हुजरा-ए-ख़याल में बैठा हुआ हूँ मैं
गोया मिरा वजूद नहीं वाहिमा हूँ में

फैला है जब से घर में समुंदर सुकूत का
बे-चारगी की छत पे खड़ा चीख़ता हूँ मैं

देखो मिरी जबीं पे मिरे अहद के नुक़ूश
रक्खो मुझे सँभाल के इक आइना हूँ मैं

अब तक शब-ए-क़याम का इक सिलसिला भी था
अब आफ़्ताब बन के सफ़र पर चला हूँ मैं

ख़ुद से तो रू-शनास अभी तक न हो सका
ये इत्तिफ़ाक़ है कि जो तुम से मिला हूँ मैं