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यूँ ही हर बात पे हँसने का बहाना आए | शाही शायरी
yun hi har baat pe hansne ka bahana aae

ग़ज़ल

यूँ ही हर बात पे हँसने का बहाना आए

अजय सहाब

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यूँ ही हर बात पे हँसने का बहाना आए
फिर वो मा'सूम सा बचपन का ज़माना आए

काश लौटें मिरे पापा भी खिलौने ले कर
काश फिर से मिरे हाथों में ख़ज़ाना आए

काश दुनिया की भी फ़ितरत हो मिरी माँ जैसी
जब मैं बिन बात के रूठूँ तो मनाना आए

हम को क़ुदरत ही सिखा देती है कितनी बातें
काश उस्तादों को क़ुदरत सा पढ़ाना आए

आह सहसा कभी स्कूल से छुट्टी जो मिले
चीख़ कर बच्चों का वो शोर मचाना आए

आज बचपन कहीं बस्तों में ही उलझा है 'सहाब'
फिर वो तितली को पकड़ना वो उड़ाना आए