यूँ दिल है सर-ब-सज्दा किसी के हुज़ूर में
जैसे कि ग़ोता-ज़न हो कोई बहर-ए-नूर में
हँस हँस के कह रही है चमन की कली कली
आता है लुत्फ़ हुस्न को अपने ज़ुहूर में
साक़ी निगाह-ए-मस्त से देता है जब कभी
लगते हैं चार चाँद हमारे सुरूर में
खाएँ जनाब-ए-शैख़ फ़रेब-ए-क़यास-ओ-वहम
ये कैफ़-ए-जाँ-नवाज़ कहाँ चश्म-ए-हूर में
मिस्ल-ए-कलीम कौन सुने लन-तरानियाँ
मेरे लिए कशिश ही कहाँ कोह-ए-तूर में
बेश अज़ दो हर्फ़ अपनी नहीं दास्तान-ए-दर्द
हम गिर के आसमान से अटके खजूर में
ये शोख़ियाँ कलाम में यूँही नहीं 'अमीं'
पढ़ने चले हैं आप ग़ज़ल रामपूर में
ग़ज़ल
यूँ दिल है सर-ब-सज्दा किसी के हुज़ूर में
अमीन हज़ीं