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यूँ भटकने में की है बसर ज़िंदगी | शाही शायरी
yun bhaTakne mein ki hai basar zindagi

ग़ज़ल

यूँ भटकने में की है बसर ज़िंदगी

इमरान शमशाद

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यूँ भटकने में की है बसर ज़िंदगी
जैसे आ जाएगी राह पर ज़िंदगी

ये करो वो नहीं वो करो ये नहीं
टोकती ही रही उम्र भर ज़िंदगी

इस तरफ़ चल दिए तो किसी ने कहा
उस तरफ़ आइए है उधर ज़िंदगी

इस तरफ़ जाइए उस तरफ़ जाइए
किस तरफ़ जाइए है किधर ज़िंदगी

तौलती भी रही डोलती भी रही
कुछ इधर ज़िंदगी कुछ उधर ज़िंदगी

कुछ पता तो चले कुछ ख़बर तो मिले
हम किधर जा रहे हैं किधर ज़िंदगी

हम नहीं जानते ये नहीं जानते
है ख़बर-दर-ख़बर बे-ख़बर ज़िंदगी

है कहीं सैकड़ों एकड़ों का महल
और कहीं एक कमरे का घर ज़िंदगी