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यूँ बाग़ कोई हम ने उजड़ता नहीं देखा | शाही शायरी
yun bagh koi humne ujaDta nahin dekha

ग़ज़ल

यूँ बाग़ कोई हम ने उजड़ता नहीं देखा

यशपाल गुप्ता

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यूँ बाग़ कोई हम ने उजड़ता नहीं देखा
मुद्दत से किसी फूल का चेहरा नहीं देखा

इस शहर में शायद कोई दिल वाला नहीं है
जो हुस्न कहीं बनता सँवरता नहीं देखा

सय्याद से गुल करते रहे जान का सौदा
माली ने लहू का कोई दरिया नहीं देखा

जो सुख के उजाले में था परछाईं हमारी
अब दुख के अँधेरे में वो साया नहीं देखा

इदराक की सरहद पे कई बार गया हूँ
जो हद से गुज़र जाता वो लम्हा नहीं देखा

ख़ुद्दारी-ए-इंसाँ को अमाँ कैसे मिलेगी
मुद्दत से ज़माने में मसीहा नहीं देखा