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ये तुम बे-वक़्त कैसे आज आ निकले सबब क्या है | शाही शायरी
ye tum be-waqt kaise aaj aa nikle sabab kya hai

ग़ज़ल

ये तुम बे-वक़्त कैसे आज आ निकले सबब क्या है

मुज़्तर ख़ैराबादी

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ये तुम बे-वक़्त कैसे आज आ निकले सबब क्या है
बुलाया जब न आए अब ये आना बे-तलब क्या है

मोहब्बत का असर फिर देखना मरने तो दो मुझ को
वो मेरे साथ ज़िंदा दफ़्न हो जाएँ अजब क्या है

निगाह-ए-यार मिल जाती तो हम शागिर्द हो जाते
ज़रा ये सीख लेते दिल के ले लेने का ढब क्या है

जो ग़म तुम ने दिया उस पर तसद्दुक़ सैकड़ों ख़ुशियाँ
जो दुख तुम से मिले उन के मुक़ाबिल में तरब क्या है

समझते थे बड़ा सच्चा मुसलमाँ तुम को सब 'मुज़्तर'
मगर तुम तो बुतों को पूजते हो ये ग़ज़ब क्या है