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ये तिरे लम्स का एहसास जवाँ-तर हो जाए | शाही शायरी
ye tere lams ka ehsas jawan-tar ho jae

ग़ज़ल

ये तिरे लम्स का एहसास जवाँ-तर हो जाए

अख़लाक़ अहमद आहन

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ये तिरे लम्स का एहसास जवाँ-तर हो जाए
ये तिरे क़ुर्ब में हर साँस जवाँ-तर हो जाए

चाह इक देर से इक राह तका करती है
आओ पहले कि वहाँ घास जवाँ-तर हो जाए

हैं कई चेहरे गुज़रते हुए राह-ए-दिल से
देखिए कौन सा अल्मास जवाँ-तर हो जाए

रस्म-ए-दुनिया के सलासिल में गिरफ़्तारी है
मत ठहरना कि कहीं फाँस जवाँ-तर हो जाए

बज़्म-ए-उल्फ़त की गिरफ़्तारी से कैसे बच पाएँ
किस को मालूम कि कब आस जवाँ-तर हो जाए

हम संजोए हुए रक्खे हैं तिरी यादों को
वक़्त आए कि जो है पास जवाँ-तर हो जाए

उस की मंज़िल का पता किस को मिला है अब तक
हाँ वही बेदिल-ए-बर्लास जवाँ-तर हो जाए