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ये तन घिरा हुआ छोटे से घर में रहता है | शाही शायरी
ye tan ghira hua chhoTe se ghar mein rahta hai

ग़ज़ल

ये तन घिरा हुआ छोटे से घर में रहता है

अकबर अली खान अर्शी जादह

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ये तन घिरा हुआ छोटे से घर में रहता है
पर अपना मन कि जो हर दम सफ़र में रहता है

धनक की तरह निखरता है शब को ख़्वाबों में
वही जो दिन को मिरी चश्म-ए-तर में रहता है

विसाल उस को लिखूँ मैं कि हिज्र का आग़ाज़
जो एक लम्हा मुसलसल नज़र में रहता है

चलो वो हम नहीं कोई तो है ज़रूर कि जो
सुकूँ से साया-ए-दीवार-ओ-दर में रहता है

है तंग जिस पे बहुत वुसअ'त-ए-ज़बान-ओ-बयाँ
वो हर्फ़ इक निगह-ए-मुख़्तसर में रहता है