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ये सुब्ह-ओ-शाम मिरी है न साज़-ओ-रख़्त मिरा | शाही शायरी
ye subh-o-sham meri hai na saz-o-raKHt mera

ग़ज़ल

ये सुब्ह-ओ-शाम मिरी है न साज़-ओ-रख़्त मिरा

सय्यद अमीन अशरफ़

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ये सुब्ह-ओ-शाम मिरी है न साज़-ओ-रख़्त मिरा
है कोई और जो करता है बंदोबस्त मिरा

दिमाग़-ए-सैर-ए-नफ़स सोज़-ओ-साज़-ए-रंज-ओ-निशात
मियान-ए-बीम-ओ-रजा है ये बूद-ओ-हस्त मिरा

मुझे है ज़र्रा-ए-ख़ाकी भी मत्ला-ए-गर्दूं
बुलंद-बीं है ख़याल-ए-बुलंद-ओ-पस्त मिरा

मिरे फ़साने में यज़्दाँ भी अहरमन भी मगर
वो ढूँढता रहा उन्वान-ए-सर-गुज़श्त मिरा

ये लड़खड़ाते सितारे ये जू-ए-मस्त-ए-ख़िराम
बिखर रहा है ख़याल-ए-जुनूँ-परस्त मिरा

मिरे नदीम-ए-दिल-ओ-जाँ पे ख़ुसरवी तस्लीम
शही असा-ए-दिल-आरा की ताज-ओ-तख़्त मिरा

फ़लक-नुमा था जमाल-ए-ग़ज़ाल रम-ख़ुर्दा
उसी के साथ गया आसमान-ए-बख़्त मिरा

न जाने क्यूँ उसे सच नागवार गुज़रा है
कि दिल-नवाज़ था लहजा न था करख़्त मिरा