EN اردو
ये सितम इक ख़्वाहिश-ए-मौहूम पर | शाही शायरी
ye sitam ek KHwahish-e-mauhum par

ग़ज़ल

ये सितम इक ख़्वाहिश-ए-मौहूम पर

अकबर हैदरी

;

ये सितम इक ख़्वाहिश-ए-मौहूम पर
लुत्फ़ फ़रमा ख़ातिर-ए-मग़्मूम पर

ऐ मसर्रत मेरे ग़म-ख़ाने से दूर
ये गिरानी और मिरे मक़्सूम पर

पुर्सिश-ए-हालात-ए-ग़म से दरगुज़र
रहम फ़रमा अब दिल-ए-मरहूम पर

बंदा-परवर सिर्फ़ इतनी अर्ज़ थी
फ़र्ज़ कुछ ख़ादिम के हैं मख़दूम पर

सब्र करती ही रही बे-चारगी
ज़ुल्म होता ही रहा मज़लूम पर

क्या मुबस्सिर दीदा-ए-ख़ूँ-बार था
तब्सिरा करता रहा मक़्सूम पर

इक तबस्सुम था जवाब-ए-आरज़ू
वुसअतें क़ुर्बां हुईं मफ़्हूम पर

इब्तिदा-ए-ग़म की दूर-अंदेशियाँ
शाद हों अंजाम-ए-ना-मा'लूम पर

आज तक 'अकबर' हूँ मैं साबित-क़दम
जादा-ए-ख़ुद्दारी-ए-मौहूम पर