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ये सितम और कि हम फूल कहें ख़ारों को | शाही शायरी
ye sitam aur ki hum phul kahen Khaaron ko

ग़ज़ल

ये सितम और कि हम फूल कहें ख़ारों को

नासिर काज़मी

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ये सितम और कि हम फूल कहें ख़ारों को
इस से तो आग ही लग जाए समन-ज़ारों को

है अबस फ़िक्र-ए-तलाफ़ी तुझे ऐ जान-ए-वफ़ा
धुन है अब और ही कुछ तेरे तलब-गारों को

तन-ए-तन्हा ही गुज़ारी हैं अँधेरी रातें
हम ने घबरा के पुकारा न कभी तारों को

ना-गहाँ फूट पड़े रौशनियों के झरने
एक झोंका ही उड़ा ले गया अँधियारों को

सारे इस दौर की मुँह बोलती तस्वीरें हैं
कोई देखे मिरे दीवान के किरदारों को

नाला-ए-आख़िर-ए-शब किस को सुनाऊँ 'नासिर'
नींद प्यारी है मिरे दौर के फ़नकारों को