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ये शीशे दिल के जो बिखरे हुए हैं | शाही शायरी
ye shishe dil ke jo bikhre hue hain

ग़ज़ल

ये शीशे दिल के जो बिखरे हुए हैं

रघुनंदन शर्मा

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ये शीशे दिल के जो बिखरे हुए हैं
तुम्हारे इश्क़ में टूटे हुए हैं

अभी भी वक़्त है तुम लौट आओ
तुम्हारे वास्ते ठहरे हुए हैं

ये सच है बचपना कीचड़ में बीता
बताओ कब मगर मैले हुए हैं

ये हिजरत सिर्फ़ हिजरत ही नहीं है
हमारी रूह के टुकड़े हुए हैं

हक़ीक़त बोलने वाले जहाँ में
बताओ कब किसे प्यारे हुए हैं