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ये राज़ उस ने छुपाया है ख़ुश-बयानी से | शाही शायरी
ye raaz usne chhupaya hai KHush-bayani se

ग़ज़ल

ये राज़ उस ने छुपाया है ख़ुश-बयानी से

सुहैल अख़्तर

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ये राज़ उस ने छुपाया है ख़ुश-बयानी से
कि मेरा ज़िक्र भी ग़ाएब है अब कहानी से

में ख़्वाहिशों के नमक का हूँ ढेर मत पूछो
जो मेरा ख़ौफ़ है जज़्बों के बहते पानी से

ग़ुरूर तोड़ना मैं चाहता हूँ दरिया का
बदल दे तू मिरी लुक्नत को अब रवानी से

सुख़न में कुछ नहीं एजाज़ की तमन्ना है
सो अर्ज़ करने लगे हम भी बे-ज़बानी से

मैं हीरा तो नहीं पोशीदा कोएले में कहीं
कभी कभी तो लगे डर भी बे-निशानी से

पहाड़ जैसे दिनों को तो काट लूँ लेकिन
निकल न पाऊँ मैं इक रात की गिरानी से

जो काम जब्र की आँधी भी कर नहीं पाती
वो काम होता है ख़ामोश मेहरबानी से

मज़ा लिया गया आवारगी का ख़ूब 'सुहैल'
मलूल मैं न हुआ अपनी बे-मकानी से