ये माना उस तरफ़ रस्ता न जाए
मगर फिर भी मुझे रोका न जाए
बदल सकती है रुख़ तस्वीर अपना
कुछ इतने ग़ौर से देखा न जाए
उलझने के लिए सौ उलझनें हैं
बस अपने आप से उलझा न जाए
इरादा वापसी का हो अगर तो
बहुत गहराई में उतरा न जाए
हमारी अर्ज़ बस इतनी है 'दानिश'
उदासी का सबब पूछा न जाए
ग़ज़ल
ये माना उस तरफ़ रस्ता न जाए
मदन मोहन दानिश

