EN اردو
ये क्या हालत बना रक्खी है ये आसार कैसे हैं | शाही शायरी
ye kya haalat bana rakkhi hai ye aasar kaise hain

ग़ज़ल

ये क्या हालत बना रक्खी है ये आसार कैसे हैं

ऐतबार साजिद

;

ये क्या हालत बना रक्खी है ये आसार कैसे हैं
बहुत अच्छा-भला छोड़ा था अब बीमार कैसे

वो मुझ से पूछने आई है कुछ लिक्खा नहीं मुझ पर
मैं उस को कैसे समझाऊँ मिरे अशआ'र कैसे हैं

मिरी सोचें हैं कैसी कौन इन सोचों का मरकज़ है
जो मेरे ज़ेहन में पलते हैं वो अफ़्कार कैसे हैं

मिरे दिल का अलावों आज तक देखा नहीं जिस ने
वो क्या जाने कि शो'ले सूरत-ए-इज़हार कैसे हैं

ये मंतिक़ कौन समझेगा कि यख़-कमरे की ठंडक में
मिरे अल्फ़ाज़ के मल्बूस शो'ला-बार कैसे हैं

ज़रा सी एक फ़रमाइश भी पूरी कर नहीं सकते
मोहब्बत करने वाले लोग भी लाचार कैसे हैं

जुदाई किस तरह बरताव हम लोगों से करती है
मिज़ाजन हम-सुख़नवर बे-दिल-ओ-बे-ज़ार कैसे हैं