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ये जल जाते हैं लब तक आह भी आने नहीं देते | शाही शायरी
ye jal jate hain lab tak aah bhi aane nahin dete

ग़ज़ल

ये जल जाते हैं लब तक आह भी आने नहीं देते

वसीम मीनाई

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ये जल जाते हैं लब तक आह भी आने नहीं देते
मदद के वास्ते आवाज़ परवाने नहीं देते

कहीं पर ज़िक्र उन का भी न आ जाए इसी डर से
वो रूदाद-ए-मोहब्बत हम को दोहराने नहीं देते

मिरे बच्चे भी मेरी ही तरह ख़ुद्दार हैं शायद
ख़याल-ए-मुफ़लिसी मुझ को कभी आने नहीं देते

चले हो मय-कशो पीने मगर तुम होश मत खोना
किसी को रास्ता घर का ये मयख़ाने नहीं देते

वो जिस के हुस्न की तारीख़ तुम ने ख़ुद ही लिक्खी थी
वही तस्वीर क्यूँ दुनिया को दिखलाने नहीं देते

'वसीम' अंसार ने ऐसे सितम ढाए मुहाजिर पर
कि हम हिजरत का लब पर नाम भी आने नहीं देते